स्वांतसुखाय, जानकारी, प्रकाशन के अवसरों का अभाव कि लापरवाही या अपने प्रकाशक या आलोचकों से उपेक्षित बहुत से महत्त्वपूर्ण लेखक और उनकी रचनाएं हमेशा से ही मुख्यधारा से दरकिनार होती रही है या की जाती रही है और यह क्रम आज निरंतर जारी है । पाठकनामा का यही प्रयास होगा कि ऎसे कृतिकार और कृतियों के बारे जितना हमें मिले, हम पाठकनामा के जुड़े हर हस्ताक्षर तक पहुंचा सके बिना वरिष्ठ-कनिष्ठ का भाव रखते हुए समभाव से..सिर्फ़ एक आग्रह से साथ की लिखने और पढनेवाले शब्द की गरिमा का सम्मान करते हुए ही अपनी बात अपने आलेखों में करेंगे। इस मंच का प्रयोग किसी के प्रति किसी भी प्रकार की भड़ास निकालने के लिए न हो ऎसी अपेक्षाएं रहेगी।
पाठकनामा में आज प्रस्तुत है कवयित्री रंजना(रंजू)भाटिया की काव्यकृति ’साया’ पर दिलीप कवठेकर की समीक्षीय टिप्पणी
नाम --रंजना (रंजू )भाटिया जन्म--- १४ अप्रैल १९६३, शिक्षा-- बी .ऐ .बी .एड, पत्रकारिता में डिप्लोमा,अनुभव ---१२ साल तक प्राइमरी स्कूल में अध्यापन, दो वर्ष तक दिल्ली के मधुबन पब्लिशर में काम जहाँ प्रेमचन्द के उपन्यासों और प्राइमरी हिंदी की पुस्तकों पर काम किया सम्राट प्रेमचंद के उपन्यासों की प्रूफ़-रीडिंग और एडीटिंग।
प्रकाशन -- प्रथम काव्य संग्रह "साया" सन २००८ में प्रकाशित। दैनिक जागरण ,अमर उजाला ,नवभारत टाइम्स ऑनलाइन भाटिया प्रकाश मासिक पत्रिका, हरी भूमि ,जन्संदेश लखनऊ आदि में लेख कविताओं का प्रकाशन ,हिंदी मिडिया ऑनलाइन ब्लॉग समीक्षा
लेखन --कविता नारी ,सामाज विषयक लेखन के साथ बाल साहित्य लिखने में विशेष रूचि वह नियिमत रूप से लेखन जारी है इन्टरनेट के माध्यम से हिंदी से लोगों को जोड़ने तथा हिंदी में लिखने के लिए प्रोत्सहित करने में विशेष रूचि फिलहाल कई ब्लॉग पर नियमित लेखन अपना ब्लॉग कुछ मेरी कलम से बहुत लोकप्रिय है इस ब्लॉग को अहमदाबाद टाइम्स और इकनोमिक टाइम्स ने विशेष रूप से कवर किया है| दीदी की पाती बाल उद्यान में बहुत लोकप्रिय रहा है और जन्संदेश लखनऊ में यह नियमित रूप से पब्लिश हो रहा है | इ पत्रिका साहित्य कुञ्ज पर लेखन और वर्ड पोएटिक सोसायटी की सदस्य
उपलब्धियां :
2007 तरकश स्वर्ण कलम विजेता
२००९ में वर्ष की सर्व श्रेष्ठ ब्लागर
२००९ में बेस्ट साइंस ब्लागर एसोसेशन अवार्ड
२०११ में हिंद युग्म शमशेर अहमद खान बाल साहित्यकार सम्मान
’साया’ मानवीय संवेदनाओं के कोमल पहलुओं से साक्षात्कार
दिलीप कवठेकर
युगों पहले जिस दिन क्रौंच पक्षी के वध के बाद वाल्मिकी के मन में करुणा उपजी थी, तो उनके मन की संवेदनायें छंदों के रूप में उनकी जुबान पर आयी, और संभवतः मानवी सभ्यता की पहली कविता नें जन्म लिया.तब से लेकर आज तक यह बात शाश्वत सी है, कि कविता में करुणा का भाव स्थाई है. अगर किसी भी रस में बनी हुई कविता होगी तो भी उसके अंतरंग में कहीं कोई भावुकता का या करुणा का अंश ज़रूर होगा.
रंजना (रंजू) भाटिया की काव्य रचनायें "साया" में कविमन नें भी यही मानस व्यक्त किया है,कहीं ज़ाहिर तो कहीं संकेतों के माध्यम से. इस काव्यसंग्रह "साया" का मूल तत्व है –
ज़िंदगी एक साया ही तो है,
कभी छांव तो कभी धूप ...
मुझे जब इस कविता के पुष्पगुच्छ को समीक्षा हेतु भेजा गया, तो मुझे मेरे एहसासात की सीमा का पता नहीं था. मगर जैसे जैसे मैं पन्ने पलटता गया, अलग अलग रंगों की छटा लिये कविताओं की संवेदनशीलता से रु-ब-रु होने लगा, और एक पुरुष होने की वास्तविकता का और उन भावनाओं की गहराई का परीमापन करने की अपनी योग्यता, सामर्थ्य के कमी का अहसास हुआ.
जाहिर सी बात है. यह सन्मान, ये खुसूसियत मात्र एक नारी के नाज़ुक मन की गहराई को जाता है.मीठी मीठी मंद सी बयार लिये कोमल संवेदनायें, समर्पण युक्त प्रेम, दबी दबी सी टीस भरी खामोशी की अभिव्यक्ति, स्वप्नों की दुनिया की मासूमियत , इन सभी पहलूओं पर मात्र एक नारी हृदय का ही अधिपत्य हो सकता है. प्रस्तुत कविता की शृंखला ' साया 'में इन सभी विशेषताओं का बाहुल्य नज़र आता है.
कविता हो या शायरी हो, कभी उन्मुक्त बहर में तो कभी गेय बन्दिश में, कभी दार्शनिकता के खुले उत्तुंग आसमान में तो कभी पाठ्यपुस्तक की शैली हो, सभी विभिन्न रंगों में चित्रित यह भावचित्र या कलाकृति एक ही पुस्तक में सभी बातें कह जाती है, अलग अलग अंदाज़ में, जुदा जुदा पृष्ठभूमि में. मीरा का समर्पण है,त्याग की भावना है और साथ ही कमाल की हद तक मीर की अदबी रवानी और रिवायत भी.
आगे एक जगह फ़िर चौंक पडा़, कि सिर्फ़ स्त्री मन का ही स्वर नहीं है, मगर पुरुष के दिल के भीतर भी झांक कर, उसके नज़रीये से भी भाव उत्पत्ति की गई है . ये साबित करती है मानव संबंधों की विवेचना पर कवियत्री की पकड जबरदस्त है. साथ ही में विषयवस्तु पर उचित नियंत्रण और परिपक्वता भी दर्शाती है.
रन्जु जी के ब्लोग पर जा कर हम मूल तत्व की पुष्टि भी कर लेतें है, जब एक जगह हम राधा कृष्ण का मधुर चित्र देखते है, और शीर्षक में लिखा हुआ पाते हैं- मेरा पहला प्यार !!!
उनके प्रस्तुत गीत संग्रह के प्रस्तावना "अपनी बात" में वे और मुखर हो ये लिखती हैं कि:
"जीवन खुद ही एक गीत है, गज़ल है, नज़्म है. बस उसको रूह से महसूस करने की ज़रूरत है. उसके हर पहलु को नये ढंग से छू लेने की ज़रूरत है."
सो ये संग्रह उनके सपनों में आते, उमडते भावों की ही तो अभिव्यक्ति है, जीवन के अनुभव, संघर्ष, इच्छाओं और शब्दों की अभिव्यक्ति है.
मेरा भी यह मानना है, कि हर कवि या कवियत्री की कविता उसके दिल का आईना होती है. या यूं कहें कि कविता के शैली से, या बोलों के चयन से अधिक, कविता के भावों से हम कविहृदय के नज़दीक जा सकते है, और तभी हम साक्षात्कार कर पाते हैं सृजन के उस प्रवाह का, या उसमें छिपी हुई तृष्णा के की सांद्रता का. तब जा कर कवि और कविता का पाठक से एकाकार हो रसोत्पत्ति होती है, और इस परकाया प्रवेश जैसे क्रिया से आनंद उत्सर्ग होता है. व्यक्ति से अभिव्यक्ति का ये रूपांतरण या Personification ही कविता है.
अब ज़रा कुछ बानगी के तौर पर टटोलें इस भावनाओं के पिटारे को:
संवेदना-
दिल के रागों नें,
थमी हुई श्वासों ने,
जगा दी है एक संवेदना......
(Sayaa 7)
अजब दस्तूर-
ज़िन्दगी हमने क्या क्या न देखा,
सच को मौत के गले मिलते देखा
(Saayaa )
जाने किस अनजान डगर से
पथिक बन तुम चले आये...
काश मैं होती धरती पर बस उतनी
जिसके ऊपर सिर्फ़ आकाश बन तुम चल पाते....
ऐसा नहीं है कि यह कविता संग्रह संपूर्ण रूप से मुकम्मल है, या इसमें कोई कमी नहीं है.
जैसा कि इस तरह के प्रथम प्रस्तुतिकरण में अमूमन होता चला आया है, कि रंगों की या रसों की इतनी बहुलता हो जाती है, कि कभी कभी वातवरण निर्मिती नही हो पाती है, और पाठक कविता के मूल कथावस्तु से छिटका छिटका सा रहता है.मगर ये क्षम्य इसलिये है, कि इस तरह के संग्रह को किसी जासूसी नॊवेल की तरह आदि से लेकर अंत तक अविराम पढा़ नहीं जा सकता, वरन जुगाली की तरह संत गति से विराम के क्षणों में ही पढा़ जाना चाहिये.
हालांकि इन कविताओं में काफ़िया मिलाने का कोई यत्न नहीं किया गया है, ना ही कोई दावा है, मगर किसी किसी जगह कविता की लय बनते बनते ही बीच में कोई विवादी शब्द विवादी सुर की मानिंद आ जाता है, तो खटकता है, और कविता के गेय स्वरूप की संभावनाओं को भी नकारता है.
संक्षेप में , मैं एक कवि ना होते हुए भी मुझे मानवीय संवेदनाओं के कोमल पहलु से अवगत कराया, रंजु जी के सादे, सीधे, मगर गहरे अर्थ वाले बोलों नें, जो उन्होने चुन चुन कर अपने अलग अलग कविता से हम पाठकों के समक्ष रखे हैं. वे कहीं हमें हमारे खुदी से,स्वत्व से,या ब्रह्म से मिला देते है, तो कभी हमें हमारे जीवन के घटी किसी सच्ची घटना के अनछुए पहलु के दर्शन करा देते है.क्या यही काफ़ी नही होगा साया को पढने का सबसे बडा़ कारण?